ब्रह्मांड – आकाशगंगा एवं तारों का निर्माण 

आप बहुत बार जब विश्व का भूगोल पढ़ते हैं तो उसमें एक अध्याय ब्रह्मांड के बारे में भी आपको देखने को मिलता है लेकिन क्या आप जानते हैं कि ब्रह्मांड क्या है एवं ब्रह्मांड की उत्पत्ति कैसे हुई अगर नहीं तो हमारी इस पोस्ट को पूरा पढ़ें जिसमें हमने ब्रह्मांड – आकाशगंगा एवं तारों का निर्माण के बारे में बिल्कुल सरल एवं आसान नोट्स तैयार किए हैं जिन्हें पढ़कर आपका यह टॉपिक अच्छे से क्लियर हो जाएगा यह नोट्स इस अध्याय के लिए काफी है अगर आप उन्हें पढ़ लेते हैं तो इनके अलावा आपको पढ़ने की आवश्यकता नहीं है

ब्रह्मांड – आकाशगंगा एवं तारों का निर्माण

  •   ब्रह्माण्ड अनंत एवं असीमित है जिसमें ग्रह, उपग्रह, तारे, मंदाकिनियाँ, उल्कापिण्ड, आकाशीय धूल-कण सम्मिलित किए जाते हैं।
  •   द्रव्य और ऊर्जा के सम्मिलित रूप को ब्रह्मांड कहते हैं। हमारी पृथ्वी सौरमंडल की सदस्य है। हमारा सौरमंडल हमारे ब्रह्मांड का एक मामूली सा हिस्सा है।
  •   ऊर्जा और पदार्थ के छोटे-छोटे गुच्छों के अलावा संपूर्ण ब्रह्माण्ड खाली है।
  •   ब्रह्माण्ड का न कोई केन्द्र बिन्दु है और न ही कोई प्रारंभिक बिन्दु है।

संकल्पना

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  •   ब्रह्माण्ड अत्यंत विस्तृत संकल्पना है।
  •   ब्रह्माण्ड में काला, गहरा व अनंत अंतरिक्ष है।
  •   ब्रह्माण्ड में तारे दिखते हैं या तो वे ऊर्जा मुक्त करते है या वे आकाशीय पिण्ड प्रकाश का अपवर्तन के कारण दिखाई देते हैं।

बिग बैंग सिद्धांत  

–  इस सिद्धांत का श्रेय जार्ज लेमेन्टेयर 1927 नामक वैज्ञानिक को जाता है जिन्होंने कहा था कि ब्रह्मांड का निरंतर विस्तार हो रहा है जिसका मतलब ये हुआ कि ब्रह्मांड कभी सघन रहा होगा। हालाँकि इसमें पहले क्या था, यह कोई नहीं जानता। हॉकिंग ब्रह्मांड की रचना को एक स्वत: स्फूर्त घटना मानते थे। प्रसिद्ध वैज्ञानिक आइजैक न्यूटन मानते थे कि इस सृष्टि का अवश्य ही कोई रचयिता होगा, अन्यथा इतनी जटिल रचना पैदा नहीं हो सकती।

  ब्रह्मांड के बारे में बिग बैंग सिद्धांत सबसे विश्वसनीय सिद्धांत है। बिग बैंग सिद्धांत के मुताबिक शून्य के आकार का ब्रह्मांड बहुत ही गरम था। इसकी वजह से इसमें विस्फोट हुआ और वो असंख्य कणों में फैल गया। तब से लेकर अब तक वो लगातार फैल ही रहा है।

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आकाशगंगा 

–  यह तारों का एक विशाल पुंज है। अंतरिक्ष में 10,000 मिलियन आकाश गंगाएँ हैं। प्रत्येक आकाश गंगा में 1,00,000 मिलियन तारें हैं। तारों के अतिरिक्त आकाश गंगा में धूल एवं गैसें भी पाई जाती है।

  ब्रह्मांड में लगभग 100 अरब आकाशगंगाएँ है। आकाशगंगाओं का समूह सुपरक्लस्टर कहलाता है।

  हमारी आकाशगंगा जिस सुपर क्लस्टर का भाग है उसे सरस्वती सुपर क्लस्टर नाम दिया गया है।

  पृथ्वी ऐरावत पथ नामक आकाश गंगा का एक भाग है।

  इस विशाल ब्रह्मांड में विभिन्न द्रव्यों के साथ एक संकेन्द्रण के फलस्वरूप तारों का निर्माण होता है। इन तारों का बड़ा समूह मिलकर आकाश गंगा का निर्माण करता है।       

–  आकाशगंगा का निर्माण बिंग बैंग विस्फोट के पश्चात् विखण्डित पदार्थों के समूह से हुआ।

  आकाश गंगा में तारों की विशाल संख्या होती है, जो ब्रह्मांड रचना की मूल निर्माण इकाइयों के समान होती है। एक सुपरक्लस्टर में 40 से 43 क्लस्टर शामिल होते हैं, जिसके एक क्लस्टर में लगभग 1000 से 10000 गैलेक्सीज होती हैं।

  मिल्की वे (Milky Way)/मंदाकिनीदुग्ध मेखला में सूर्य, पृथ्वी और हमारा सौरमंडल स्थित है जो लानियाका नामक सुपरक्लस्टर (Laniakea Supercluster) का भाग है।

  ब्रह्माण्ड में लगभग 1011 आकाशगंगाएँ मौजूद है और प्रत्येक गैलेक्सी में उतनी ही संख्या के तारे मौजूद है।

  ब्रह्माण्ड में कुल तारे लगभग 1011×1011=1022 मौजूद है।

प्रमुख आकाशगंगाएँ

(1)  लाइम अल्फा ब्लॉब

   यह ब्रह्माण्ड की सबसे बड़ी आकाशगंगा है।

(2)  एन्ड्रोमीडा-

  हमारी आकाशगंगा/ सौर मण्डल की सबसे नजदीकी आकाशगंगा है।

(3)  मंदाकिनी –

–  हमारा सौर मण्डल इसी गैलेक्सी में स्थित है।  

–  इस आकाशगंगा को दूध मेखला गैलेक्सी भी कहा जाता है।

–  इस आकाशगंगा का आकार सर्पिलाकार है।

नीहारिका

–  नेबुला, गैस, धूल के कणों से मिलकर बना एक तारकीय बादल है।

  नेबुला के गुण भिन्न होने के कारण इसकी संरचना एवं पर्यावरण के आधार पर निर्धारित की जाती है।

–  ओरियन नेबुला– यह हमारी मंदाकिनी गैलेक्सी का सबसे चमकीला भाग है। यह एक प्रकार के तारों का झुण्ड है।     

–  प्लीएड्स नेबुला– यह एक प्रकार की परावर्तन नेबुला है, जो आस-पास के बड़े तारों के परावर्तित प्रकाश से चमकते हैं।

–  बर्नार्ड 68- यह एक अंधेरा नेबुला है जो उसी समय दिखाई देता है, जिसके पीछे कोई विशाल चमकीला पृष्ठ हो।

तारों का निर्माण

–  प्रारंभिक ब्रह्मांड में ऊर्जा व पदार्थ का वितरण समान नहीं था। घनत्व में आरंभिक भिन्नता से गुरुत्वाकर्षण बलों में भिन्नता आई, जिसके परिणामस्वरूप पदार्थ का एकत्रण हुआ। यहीं एकत्रण आकाशगंगाओं के विकास का आधार बना। एक आकाशगंगा असंख्य तारों का समूह है।

  आकाशगंगाओं का विस्तार इतना अधिक होता है कि उनकी दूरी हजारों प्रकाश वर्षों में (Light years) मापी जाती है। एक अकेली आकाशगंगा का व्यास 80 हजार से 1 लाख 50 हजार प्रकाश वर्ष के बीच हो सकता है। एक आकाशगंगा के निर्माण की शुरुआत हाइड्रोजन गैस से बने विशाल बादल के संचयन से होती है जिसे नीहारिका (Nebula) कहा गया। इस बढ़ती हुई नीहारिका में गैस के झुंड विकसित हुए। ये झुंड बढ़ते-बढ़ते घने गैसीय पिंड बने, जिनसे तारों का निर्माण आरंभ हुआ। ऐसा विश्वास किया जाता है कि तारों का निर्माण लगभग 5 से 6 अरब वर्षों पहले हुआ।

प्रकाश वर्ष – ♦ प्रकाश वर्ष (Light year) समय का नहीं वरन् दूरी का माप है। प्रकाश की गति 3 लाख किमी. प्रति सैकेंड है। विचारणीय है कि एक साल में प्रकाश जितनी दूरी तय करेगा, वह एक प्रकाश वर्ष होगा। यह 9.461 1012 किमी. के बराबर है। पृथ्वी व सूर्य की औसत दूरी 14 करोड़ 95 लाख, 98 हजार किलोमीटर है। प्रकाश वर्ष के संदर्भ में यह प्रकाश वर्ष का केवल 8.311 है। 

तारों का जीवन चक्र

–  तारों का जीवन काल अत्यधिक लम्बा होता है।

  तारे के जीवन-चक्र की निम्नलिखित अवस्थाएँ है।

–   ब्रह्माण्ड में उपस्थित गैसों एवं धूल के कणों के गुरुत्वाकर्षण बल के कारण गैलेक्सी के केन्द्र में नाभिकीय संलयन अभिक्रिया प्रारंभ होती है एवं हाइड्रोजन के हीलियम में बदलने के कारण नवीन तारे का निर्माण होता है अर्थात् इन्हीं को स्टेलर नर्सरी कहा जाता है।

  किसी तारे का अंतिम जीवन चक्र ब्लैक हॉल (कृष्ण विवर) माना जाता है क्योंकि विस्फोट के बाद तारे की मृत्यु हो जाती है।

चन्द्रशेखर सीमा

  यदि किसी तारे का द्रव्यमान सूर्य के द्रव्यमान का 1.44 गुणा है तो वह ब्लैकहोल नहीं बनता है।

  चन्द्रशेखर ने श्वेत वामान तारे के जीवन अवस्था सिद्धांत के बारे में प्रतिपादन 1930 में किया था।

ब्लैक हॉल

  यह आकाश गंगा का केन्द्र होता है जो प्रकाश के अपरावर्तन के कारण दिखाई नहीं देता है। परन्तु इससे x किरणों के रूप में ऊर्जा का उत्सर्जन होने के कारण यह अपनी उपस्थिति का आभास करवाता है। (x किरणों की खोज रौटजन ने की)

आदि तारा

–  इस तारे का निर्माण आकाशगंगा में हाइड्रोजन का बादल जब बड़ा होता है तो वह गुरुत्वाकर्षण के प्रभाव से गैसीय पिण्ड सिकुड़ने लगते है जो तारे के जन्म की प्रारंभिक अवस्था मानी जाती है।

पूर्ण तारा

–  तारे के सिकुड़ने पर गैसों के बादल में परमाणुओं की टक्करों की संख्या बढ़ जाती है जिसे हाइड्रोजन हीलियम में परिवर्तित होना प्रारंभ कर देता है।

लाल दानव तारा

–  तारे के बाह्य कवच की हाइड्रोजन का हीलियम में परिवर्तन होने से ऊर्जा वितरण की तीव्रता घट जाती है तथा रंग बदलकर लाल हो जाता है। इस अवस्था को लाल दानव तारा कहा जाता है।

–  किसी तारे का द्रव्यमान सूर्य के 1.4 गुने द्रव्यमान से कम है तो वह लाल दानव से श्वेत वामन तथा अंत में काला वामन में परिवर्तित हो जाता है।

सुपरनोवा

  लाल दानव में विस्फोट से सुपरनोवा बनता है।

  किसी तारे का द्रव्यमान सूर्य के द्रव्यमान 1.4 गुने से अधिक 3 गुने तक द्रव्यमान तक हो जाता है तो तारे का मध्य परतों में गुरुत्वाकर्षण के कारण तारे के केन्द्र में ध्वस्त हो जाता है तथा इससे निकलने वाली ऊर्जा तारे के ऊपरी परत को पूर्णत: नष्ट कर देती है और भयानक विस्फोट होता है, इसी घटना को सुपरनोवा विस्फोट कहा जाता है।

  सुपरनोवा विस्फोट के बाद वह तारा न्यूट्रॉन तारा हो जाता है।

  सुपरनोवा एक तारे की एक विस्फोट अवस्था है।

न्यूट्रॉन तारा

–  अधिक गति से चक्कर लगाने वाल न्यूट्रॉनों से बने तारे को न्यूट्रॉन तारा कहा जाता है।

  इस तारे का घनत्व अधिक होता है।

   यह तारा अत्यधिक तीव्र रेडियो तरंगें उत्सर्जित करता है।

  इस तारे को पल्सर भी कहा जाता है।

नक्षत्र एक तारामंडल

  तारों के विभिन्न समूह को तारा मण्डल कहा जाता है। जिसकी संख्या 89 है।

  चन्द्रमा, पृथ्वी की परिक्रमा करते हुए 27 तारामंडलों को पार करता है, उन्हें नक्षत्र कहते है।

   ये आकाश में पृथ्वी के चतुर्दिक् स्थित होते हैं तथा रात्रि काल में दिखाई देते हैं। इनकी संख्या 12 मानी जाती है।इन्हें राशि चक्र कहते है।

राशि चक्र

–  पृथ्वी, सूर्य की परिक्रमा करते हुए 12 तारामंडलों को पार करती है।

ध्रुव तारा

–  यह हमेशा उत्तर दिशा में दिखाई देता है।

  इसे पोलस्टार भी कहा जाता है।

  ध्रुव का शाब्दिक अर्थ अटल या स्थिर होता है।

  तारों के विभिन्न समूहों को तारामंडल, नक्षत्रमंडल कहा जाता है।

  तारों के समूह को विभिन्न देशों में अलग-अलग नामों से जाना जाता है।

  भारत में आसमान में दिखने वाले सात तारों के समूह को सप्तर्षि मंडल कहा जाता है।

   भारत में चार तारों के समूह को चारपाई कहा जाता है।

  इन्हीं तारों को फ्रांस में सॉसपेन या हत्थे वाली देगची कहा जाता है।

  ब्रिटेन में खेत जुताई वाला हल, यूनान में इसे स्मॉल बीयर और अर्सामेजर/ ग्रेट बीयर (Great Bear) कहते है।

  मानव जाति द्वारा तारों के प्रति काल्पनिक कहानियाँ / पारम्परिक किस्से प्रदर्शित किए जाते हैं, उन्हें मिथक कहा जाता है।

ग्रहों का निर्माण

–  ग्रहों के विकास की निम्नलिखित अवस्थाएँ मानी जाती है-

1. तारे नीहारिका के अंदर गैस के गुंथित झुंड हैं। इन गुंथित झुंडों में गुरुत्वाकर्षण बल से गैसीय बादल में क्रोड का निर्माण हुआ और इस गैसीय क्रोड के चारों तरफ गैस व धूलकणों की घूमती हुई तश्तरी (Rotating) विकसित हुई।

2. अगली अवस्था में गैसीय बादल का संघनन आरंभ हुआ और क्रोड को ढकने वाला पदार्थ छोटे गोलों के रूप में विकसित हुआ। ये छोटे गोले संसंजन (अणुओं में पारस्परिक आकर्षण) प्रक्रिया द्वारा ग्रहाणुओं (Planetestimals) में विकसित हुए और संघनन (condensation) की क्रिया द्वारा बड़े पिंड बनने शुरू हुए और गुरुत्वाकर्षण बल के परिणामस्वरूप ये आपस में जुड़ गए। छोटे पिंडों की अधिक संख्या ही ग्रहाणु है।

3. अंतिम अवस्था में इन अनेक छोटे ग्रहाणुओं के सहवर्धित होने पर कुछ बड़े पिंड ग्रहों के रूप में बने।

खगोलीय पिण्ड

–  आसमान में फैले तारे,उल्का, ग्रह, उपग्रह, धूमकेतु आदि जिनमें हमारी पृथ्वी,सूर्य एवं चन्द्रमा भी शामिल हो, खगोलीय पिंड कहलाते हैं।

–  सबसे चर्चित पुच्छल तारा हैली है। यह 76 वर्ष बाद दिखाई देता है। इसे 1986 में देखा गया। यह तारा काफी आकर्षक एवं निराला होता है।

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