क्या आप जानते हैं भारत में कौन-कौन सी मिट्टियां पाई जाती है एवं भारतीय मिट्टी के प्रकार कौन से हैं | कौन सी मिट्टी खेती के लिए सबसे अधिक उपजाऊ है आज की इस पोस्ट में काम मिट्टी के बारे में ही विस्तार से पढ़ेंगे एवं जानेंगे भारतीय भूगोल का यह एक महत्वपूर्ण टॉपिक है जहां से बहुत बार परीक्षा में प्रश्न भी पूछे जाते हैं इसलिए अगर आप भारतीय मृदा से संबंधित शानदार नोट्स पढ़ना चाहते हैं तो हमारी इस पोस्ट को पूरा पढ़ें एवं आगामी परीक्षा के लिए जरूर याद करें
भारतीय मिट्टी
· मृदा शब्द की उत्पत्ति लैटिन भाषा के शब्द सोलम (Solum) से हुई है, जिसका अर्थ है – अनेक प्रकार के खनिजों, पौधों और जीव-जन्तुओं के अवशेषों से निर्मित हुई मृदा ।
· मृदा एक बहुमूल्य प्राकृतिक संसाधन है।
· पृथ्वी के पृष्ठ की ऊपरी परत पर असंगठित दानेदार कणों के आवरण वाली परत मृदा कहलाती है।
मृदा के पोषक तत्त्व एवं उनके कार्य (Soil nutrients and their functions)
तत्त्व | कार्य |
फॉस्फोरस (P) | जड़ों का विकास, ऊर्जा संग्रहण, शीघ्र फल पकाने में सहायक। |
पोटैशियम (K) | रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने, पानी का उचित अवशोषण करवाने में उपयोगी। |
नाइट्रोजन (N) | वृद्धि एवं प्रोटीन उत्पादन में सहायक। |
कैल्सियम (Ca) | कोशिका संरचना एवं विभाजन में उपयोगी। |
सल्फर (S) | प्रोटीन एवं तेल निर्माण में सहायक। |
मैग्नीशियम (Mg) | पौधे में लोहे के अवशोषण में सहायक, क्लोरोफिल का मुख्य तत्त्व। |
भारतीय मिट्टी के प्रकार
· भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद् (ICAR) ने भारत की मिट्टियों को 8 वर्गों में विभाजित किया है:-
1. जलोढ़ मिट्टी (Alluvial soil)
· इस मिट्टी का विस्तार भारत के लगभग 43.36% भाग पर है। जो 14.25 लाख वर्ग किमी. क्षेत्रफल पर है।
· इस मिट्टी के दो प्रमुख क्षेत्र हैं:-
(i) उत्तर का विशाल मैदान
(ii) तटवर्ती मैदान
· इसके अलावा नदियों की घाटियों एवं डेल्टाई भागों में भी यह मिट्टी पाई जाती है।
· इस मिट्टी में नाइट्रोजन, फॉस्फोरस एवं ह्यूमस की कमी होती है परंतु पोटाश एवं चूने का अंश पर्याप्त होता है।
2. लाल एवं पीली मिट्टी (Red and yellow soil)
· यह भारत की दूसरी प्रमुख प्रकार की मिट्टी है, जो कुल मिट्टियों में 18.6% भाग में फैली है।
· इस मिट्टी का विस्तार लगभग 6.1 लाख वर्ग कि.मी. क्षेत्र में पाया जाता है।
· इसका निर्माण ग्रेनाइट एवं नीस तथा शिष्ट जैसी रूपांतरित चट्टानों के विखंडन से हुआ है।
· इस मिट्टी में नाइट्रोजन, फॉस्फोरस एवं ह्यूमस की कमी होती है।
· इस मिट्टी में मुख्यतः मोटे अनाज, दलहन एवं तिलहन की कृषि की जाती है।
· लौह ऑक्साइड 3.61 के कारण लाल रंग में दिखाई देती है।
3. काली मिट्टी (Black soil)
· यह 15.2 प्रतिशत क्षेत्रफल पर 4.98 लाख किमी. वर्ग क्षेत्रफल पर है।
· काली मिट्टी भारत की तीसरी प्रमुख मिट्टी है, जिसे रेगुर, काली कपासी मिट्टी तथा अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर उष्णकटिबंधीय चरनोजम इत्यादि नामों से जाना जाता है।
· इस मृदा का रंग गाढ़े काले और स्लेटी रंग के बीच की विभिन्न आभाओं का होता है।
· यह मृदा मुख्यतः महाराष्ट्र, दक्षिण एवं पूर्वी गुजरात, पश्चिमी मध्य प्रदेश, उत्तरी कर्नाटक, उत्तरी तेलंगाना, उत्तर-पश्चिम तमिलनाडु, दक्षिण-पूर्वी राजस्थान आदि क्षेत्रों में पाई जाती है।
· इस मिट्टी में लोहा, एल्युमिनियम, मैग्नीशियम एवं चूने की अधिकता होती है तथा नाइट्रोजन, फॉस्फोरस एवं जैविक सामग्री की कमी पाई जाती है।
· यह मिट्टी कपास की कृषि के लिए उत्तम होती है।
· इसके अलावा यह मिट्टी मूँगफली, तम्बाकू, गन्ना, दलहन एवं तिलहन की कृषि के लिए भी अनुकूल है।
· इस मिट्टी की जलधारण क्षमता अधिक है।
4. लैटेराइट मिट्टी (Laterite soil)
· लैटेराइट एक लैटिन शब्द ‘लेटर’ से बना है, जिसका शाब्दिक अर्थ ईंट होता है। लैटेराइट मृदाएँ उच्च तापमान और भारी वर्षा के क्षेत्रों में विकसित होती हैं। ये मृदाएँ उष्ण कटिबंधीय वर्षा के कारण हुए तीव्र निक्षालन (leaching)का परिणाम है। इसका सर्वप्रथम अध्ययन 1905 में बुकानन द्वारा किया गया।
· अधिक वर्षा के कारण लैटेराइट चट्टानों पर निक्षालन (Leaching) की क्रिया होती है। फलस्वरूप सिलिका एवं चूने के अंश रिसकर नीचे चले जाते हैं एवं मृदा के रूप में लोहा एवं एल्युमिनियम के यौगिक बचे रह जाते हैं।
· इसका सर्वाधिक विस्तार केरल में है।
· इस मिट्टी में चूना, नाइट्रोजन, पोटाश एवं ह्यूमस की कमी होती है।
· चूने की कमी के कारण यह मृदा अम्लीय होती है।
· इस मिट्टी की उर्वरा शक्ति लाल मिट्टी से भी कम होती है।
· इस मिट्टी में मोटे अनाज, दलहन एवं तिलहन की कृषि की जाती है।
· इस मृदा को काजू वाली मृदा के नाम से जाना जाता है।
· अम्लीय होने के कारण इस मिट्टी में चाय की भी कृषि की जाती है। एल्यूमिनियम 25.28 प्रतिश एवं लोहा 18.7 प्रतिशत है।
5. पर्वतीय मिट्टी (Mountain soil)
· इसे वनीय मिट्टी (Forest Soil) भी कहा जाता है।
· पर्वतीय ढालों पर विकसित होने के कारण इस मिट्टी की परत पतली होती है।
· इस मिट्टी में जीवांश की अधिकता होती है।
· ये जीवांश अधिकतर अपघटित (Undecomposed) होते हैं, फलस्वरूप ह्यूमिक अम्ल का निर्माण होता है एवं मिट्टी अम्लीय हो जाती है।
· इस मिट्टी में पोटाश, फॉस्फोरस एवं चूने की कमी होती है।
· इस मिट्टी की उर्वरा शक्ति कम होती है।
· फलों की कृषि व सब्जी उत्पादन हेतु उपयोगी मिट्टी है।
· इस मृदा में फलों (सेब, नाशपती, स्ट्रोबेरी) व सूखे मेवे (बादाम व अखरोट) की खेती की जाती है।
6. मरुस्थलीय मिट्टी (Desert soil)
· इस मिट्टी का भौगोलिक विस्तार 1.42 लाख वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में पाया जाता है।
· यह वास्तव में बलुई मिट्टी है, जिसमें लोहा एवं फॉस्फोरस पर्याप्त होता है, परंतु इसमें नाइट्रोजन एवं ह्यूमस की कमी होती है।
· इस मिट्टी में मुख्यतः मोटे अनाजों की कृषि की जाती है, परंतु जहाँ सिंचाई की पर्याप्त सुविधा है वहाँ कपास एवं गेहूँ की भी कृषि की जाती है।
7. नमकीन एवं क्षारीय मिट्टी (Saline and alkaline soil)
· इस मिट्टी को रेह, ऊसर या कल्लर नाम से भी जाना जाता है।
· यह मिट्टी 1 लाख वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में पाई जाती है।
· यह मिट्टी छिटपुट रूप से पाई जाती है।
· इस मिट्टी का विकास वैसे क्षेत्रों में हुआ है, जहाँ जल निकासी की समुचित व्यवस्था का अभाव है एवं अति सिंचाई है।
· ऐसी स्थिति में केशिका क्रिया (capillary action) की क्रिया द्वारा सोडियम, कैल्सियम एवं मैग्नीशियम के लवण मृदा की ऊपरी सतह पर निक्षेपित हो जाते हैं। फलस्वरूप इस मिट्टी में लवण की मात्रा काफी बढ़ जाती है।
· ऐसी मृदाओं में नाइट्रोजन की कमी होती है।
8. पीट या जैविक मिट्टी (Peat or organic soil)
· दलदली क्षेत्रों में काफी अधिक मात्रा में जैविक पदार्थों के जमा हो जाने से इस मिट्टी का निर्माण होता है।
· इससे लवण एवं जैव पदार्थों की प्रचूरता परन्तु फास्फेट और पोटाश की कमी होती है।
· यह कभी-कभी बड़ी मात्रा में फेरस और एल्यूमीनियम सल्फेट के कारण पौधा के लिए जहरीली हो जाती है।
· यह केरल के कोट्टायम जनपद और अलप्पुजा जनपद में तथा तटीय क्षेत्र में पायी जाती है।
· उत्तरी बिहार के मध्यवर्ती भाग तभा उत्तराखंड के अल्मोड़ा में है।

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