भारत में अंग्रेजों का आगमन कब और कैसे हुआ

क्या आप जानते हैं भारत में अंग्रेजों का आगमन कब और कैसे हुआ क्योंकि हम अक्सर सुनते हैं कि भारत पर अंग्रेजों ने कई सालों तक राज किया है लेकिन जब आप इतिहास को पढ़ते हैं तो उसमें यह सभी विस्तार से पढ़ने के लिए मिलता है आज की इस पोस्ट में हम इसी टॉपिक पर चर्चा करने वाले हैं जिसमें आपको अंग्रेजों के बारे में एवं उनके आगमन के बारे में संपूर्ण जानकारी इस पोस्ट के माध्यम से उपलब्ध करवाई गई

भारत में अंग्रेजों का आगमन

– इंग्लैण्ड की रानी एलिजाबेथ-I के समय में 31 दिसम्बर, 1600 को ‘दि गवर्नर एण्ड कम्पनी ऑफ लन्दन ट्रेंडिंग इन्टू दि ईस्ट इंडीज’ अर्थात् ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कम्पनी की स्थापना हुई जिसे महारानी एलिजाबेथ ने पूर्वी देशों से व्यापार करने के लिए चार्टर प्रदान किया।

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– भारत आने वाला प्रथम अंग्रेज नागरिक थॉमस स्टीफेन्स था जो 24 अक्टूबर, 1579 को पादरी के रूप में गोवा आया था।

– 1608 ई. में ब्रिटेन के सम्राट जेम्स प्रथम ने कैप्टन हॉकिन्स को अपने राजदूत के रूप में मुगल सम्राट जहाँगीर के दरबार में भेजा। 1609 ई. में हॉकिन्स ने जहाँगीर से मिलकर सूरत में बसने की इजाजत माँगी परन्तु पुर्तगालियों तथा सूरत के सौदागरों के विद्रोह के कारण उसे स्वीकृति नहीं मिली।

– हॉकिंस फारसी भाषा का ज्ञाता था। कैप्टन हॉकिंस तीन वर्ष आगरा में रहा। जहाँगीर ने उससे प्रसन्न होकर 400 का मनसब तथा जागीर प्रदान की।

– 1615 ई. में सम्राट जेम्स-I ने सर टामस-रो को अपना राजदूत बना कर जहाँगीर के पास भेजा।

– 1611 ई. में दक्षिण-पूर्वी समुद्र तट पर सर्वप्रथम अंग्रेजों ने मछलीपट्टनम में व्यापारिक कोठी की स्थापना की।

– डॉक्टर विलियम हैमिल्टन, जिसने सम्राट फर्रुखसियर को एक प्राण घातक बीमारी से निजात दिलाई थी, इस सेवा से खुश होकर 1717 ई. में सम्राट फर्रुखसियर ने ईस्ट इंडिया कम्पनी के लिए फरमान जारी किया, जिसके तहत बंगाल में कम्पनी को 3,000 रुपये वार्षिक देने पर नि:शुल्क व्यापार का अधिकार मिल गया।

– 1669 ई. से 1677 ई. तक बम्बई का गवर्नर रहा गेराल्ड अंगियार ही वास्तव में बम्बई का महानतम संस्थापक था। 1687 ई. तक बम्बई पश्चिमी तट का प्रमुख व्यापारिक केन्द्र बना रहा। गेराल्ड अंगियार ने बम्बई में किलेबन्दी के साथ ही गोदी का निर्माण करवाया तथा बम्बई नगर की स्थापना और एक न्यायालय और पुलिस दल की स्थापना की। गेराल्ड अंगियार ने बम्बई के गवर्नर के रूप में यहाँ से ताँबे और चाँदी के सिक्के ढालने के लिए टकसाल की स्थापना करवाई।

– टॉमस रो की पुस्तक ̵ पूर्वी द्वीपों की यात्रा       

– बंगाल का प्रथम अंग्रेज गर्वनर ̵ विलियम हैजेज–  

भारत में फ्रांसीसियों का आगमन

– फ्रांसीसियों ने भारत में सबसे अन्त में प्रवेश किया। फ्रांस के सम्राट लुई    14वें के मंत्री कोलबर्ट के सहयोग से 1664 ई. में भारत में फ्रांसीसी ईस्ट इंडिया कम्पनी की स्थापना हुई। यह सरकारी आर्थिक सहायता पर-     निर्भर थी, इसलिए इसे सरकारी व्यापारिक कम्पनी भी कहा जाता है।

– भारत में फ्रांसीसियों की पहली कोठी फ्रेंको कैरो द्वारा सूरत में 1668 ई. में स्थापित हुई। गोलकुण्डा रियासत के सुल्तान से अधिकार-पत्र प्राप्त करने के बाद फ्रांसीसियों ने अपनी दूसरी व्यापारिक कोठी की स्थापना 1669 ई. में मछलीपट्टनम में की थी।

– 1673 ई. में फेंको मार्टिन तथा बेलागर-द-लेस्पिन ने वलिकोण्डपुरम के मुस्लिम सूबेदार शेर खाँ लोदी से एक छोटा गाँव पुडुचेरी प्राप्त किया।

– पुडुचेरी में ही फ्रांसीसियों ने पांडिचेरी की नींव डाली।

– “विलियम नोरिस” औरंगजेब के दरबार में आने वाला अंग्रेज राजदूत था।

– एशिया से मुक्त व्यापार करने वाले अंग्रेज व्यापारी इंटरलोपर कहलाते थे।

– फ्रेंको मार्टिन पांडिचेरी का प्रथम गर्वनर बना था।

– फ्रांसिसी गवर्नर डुप्ले पहला व्यक्ति था जिसने भारत में यूरोपीयन साम्राज्य (उपनिवेश) की नींव रखी।

डेन :  

– डेनमार्क की ‘ईस्ट इण्डिया कम्पनी’ की स्थापना 1616 ई. में हुई। इस कम्पनी ने 1620 ई. में त्रैकोवार (तमिलनाडु) तथा 1667 ई. में सेरामपुर (बंकार) में अपनी व्यापारिक फैक्ट्रियाँ स्थापित की। सेरामपुर इनका प्रमुख व्यापारिक केन्द्र था। 1845 ई. में डेन लोगों ने वाणिज्य कंपनी को अंग्रेजों को बेच दिया।

आंग्ल-फ्रांसीसी संघर्ष

– अंग्रेजों व फ्रांसीसियों के मध्य लड़े गए युद्धों को “कर्नाटक युद्ध” के नाम से जाना जाता है।

-व्यापार पर एकाधिकार और राजनीतिक नियत्रंण स्थापित करने की महत्वाकांक्षा ने ईस्ट इंडिया कम्पनी और फ्रेंच ईस्ट इंडिया कंपनी के बीच तीन कर्नाटक युद्धों को जन्म दिया।

प्रथम कर्नाटक युद्ध (1746-48 ई.)

– कर्नाटक का प्रथम युद्ध यूरोप में इंग्लैंड एवं फ्रांस के बीच ऑस्ट्रिया के उत्तराधिकार को लेकर चल रहे संघर्ष का विस्तार था।

– 1746 ई. डूप्ले ने मद्रास पर अधिकार कर लिया और इसे कर्नाटक के नवाब अनवरुद्दीन को वापस लौटाने से इनकार कर दिया। परिणामस्वरूप नवाब ने फ्रांसीसियों के विरुद्ध सेना भेजी।

– डूप्ले ने इस सेना को सेंट टोमे के युद्ध की लड़ाई में पराजित कर दिया।

– कर्नाटक का प्रथम युद्ध सेंट टोमे के युद्ध के लिए प्रसिद्ध है क्योंकि यह पहला युद्ध था जो किसी भारतीय सेना और यूरोपीय सेना के बीच लड़ा गया था। इसे अडयार का युद्ध भी कहते हैं।

– वर्ष 1748 में एक्स-ला-शापेल की संधि से यूरोप में दोनों शक्तियों के मध्य समझौता होने से प्रथम कर्नाटक युद्ध भी समाप्त हो गया और मद्रास अंग्रेजों को वापस मिल गया, जिसके बदले में फ्रांसीसियों को उत्तरी अमेरिका में नए क्षेत्र मिले।

द्वितीय कर्नाटक युद्ध (1749 – 55 ई.)

– यह युद्ध भारतीयों के आपसी संघर्षों से लाभ उठाने के उद्देश्य से यूरोपीय शक्तियों में अप्रत्यक्ष रूप से हुए संघर्ष का परिणाम था।

– 1755 ई. में अंग्रेजों एवं फ्रांसीसियों के बीच पाण्डिचेरी की संधि हुई।

– जिसमें यह तय हुआ कि दोनों एक दूसरे के आन्तरिक मामलों में हस्तक्षेप नहीं करेंगे।   

तृतीय कर्नाटक युद्ध (1756-63 ई.)  

– 1756 ई. में यूरोप में सप्तर्षीय युद्ध प्रारम्भ होने पर पाण्डिचेरी की संधि द्वारा स्थापित शांति समाप्त हो गई। 1757 ई. में बंगाल विजय से अंग्रजों को अपार धन मिला, जबकि फ्रांसीसी कम्पनी के सामने धन की कमी एक प्रमुख समस्या थी।

– 1760 . में वांडिवाश के युद्ध में सर आयर कूट ने फ्रांसीसी सेना को बुरी तरह से पराजित किया और 1761 में अंग्रेजों ने फ्रांसीसी मुख्यालय पाण्डिचेरी पर अधिकार कर लिया। पांडिचेरी की किलेबंदी नष्ट कर दी गई और भारत में फ्रांसीसियों के प्रसार की संभावनाओं को नष्ट कर दिया।

सप्तवर्षीय युद्ध इंग्लैण्ड व फ्रांस के मध्य यूरोप में 1756-1763 ई. के मध्य लड़ा गया जिसमें 1763 ई. में पेरिस संधि के द्वारा यह युद्ध समाप्त हुआ।

ईस्ट इण्डिया कम्पनी की बंगाल विजय

– 1717 ई. में मुर्शीदकुली खाँ की मुगल गवर्नर के रूप में नियुक्ति हुई लेकिन उसने बंगाल मे स्वतंत्र राज्य स्थापित करने में सफलता प्राप्त की। 1740 ई. में अलीवर्दी खाँ बंगाल का नवाब बना और उसकी मृत्यु के बाद 1756 ई. में उसका पौत्र सिराजुद्दौला बंगाल का नवाब बना। सिराजुद्दौला के अंग्रेजों से मतभेद के कारण 1757 ई. में प्लासी का युद्ध हुआ।

ब्लैक हॉल दुर्घटना-(20 जून, 1756 ई.)

– 4 जून, 1756 को नवाब ने अंग्रेजों की कासिम बाजार कोठी पर हमला कर दिया और 20 जून तक फोर्ट विलियम पर भी कब्जा कर लिया।

– इसके बाद बंदी बनाए गए 146 अंग्रेज कैदियों को 14 फुट 10 इंच की कोठरी में बंद कर दिया गया। भयंकर गर्मी एवं दम घुटने से अगले दिन केवल 23 कैदी ही जीवित बचे।

– इसे ब्लैक हॉल दुर्घटना कहा जाता है।

– अंग्रेज इतिहासकार हॉलवेल इस ब्लेक हॉल दुर्घटना में जिंदा बचने के बाद इस घटना का उल्लेख अपनी पुस्तक “Alive the wonder” में किया।

प्लासी का युद्ध (23 जून, 1757)

– बंगाल पर नियंत्रण स्थापित करने हेतु क्लाइव ने नवाब के सेनापति मीर जाफर, जगत सेठ, राय दुर्लभ एवं अमीचन्द के साथ मिलकर षड्यंत्र किया। जिसके तहत मीर जाफर को नवाब बनाना तय किया गया।

– 23 जून, 1757 को मुर्शिदाबाद के दक्षिण में प्लासी के मैदान में युद्ध लड़ा गया। यह औपचारिकता मात्र था क्योंकि मीर जाफर एवं दुर्लभ राय के नेतृत्व वाले हिस्से ने युद्ध मे भाग ही  नहीं लिया।

– अंग्रेजों से बड़ी सेना के बावजूद नवाब को इस युद्ध से भागना पड़ा तथा बाद में मारा गया।

प्लासी के युद्ध के परिणाम

– इस युद्ध के बाद में ईस्ट इंडिया कंपनी के सहयोग से मीर जाफर बंगाल का नवाब बना। ईस्ट इंडिया कंपनी को अपदस्थ नवाब सिराजुद्दौला से कलकत्ता पर आक्रमण करने के मुआवज़े स्वरूप 17,700,000 रुपये भी मिले।

– कंपनी को बंगाल, बिहार और ओडिशा में उन्मुक्त व्यापार का अधिकार भी मिला। इसके अतिरिक्त कंपनी को नवाब मीर जाफर से बंगाल के 24 परगना की ज़मींदारी भी मिली। इस प्रकार रातों-रात यह कंपनी भारत में एक क्षेत्रीय शक्ति बन गई।

बक्सर का युद्ध (23 अक्टूबर, 1764)

– मीर कासिम ने आशा की थी, कि कंपनी बंगाल के नवाब के रूप में उसकी संप्रभुता का सम्मान करेगी। अपनी वास्तविक शक्ति को सुनिश्चित करते हुए उसने अपनी राजधानी मुर्शिदाबाद से मुंगेर स्थानांतरित कर दी थी। उसने भारतीय व्यापारियों को अंग्रेज़ व्यापारियों के समान ही बिना किसी शुल्क अदायगी के व्यापार करने की अनुमति दे दी। यह कदम कंपनी की अपेक्षाओं के प्रतिकूल थे।

– अतः मीर कासिम और कंपनी के बीच लड़ाई आवश्यक हो गई। मीर कासिम ने अवध के नवाब शुजाउदौला और मुगल बादशाह शाह आलम द्वितीय, जो अवध में रह रहा था, का समर्थन प्राप्त किया। हमेशा की भाँति अंग्रेजों ने दांव-पेंच का सहारा लिया और शुजाउदौला के बहुत से अधिकारियों और अधीनस्थों को अपने पक्ष में कर लिया।

– अंत में दोनों सेनाओं के बीच 1764 ई. में बक्सर की लड़ाई हुई। इस लड़ाई में कंपनी की सेना के कमांडर हेक्टर मुनरो ने शुजाउदौला और मीर कासिम को बुरी तरह परास्त कर दिया। इस बीच मुगल बादशाह शाह आलम द्वितीय ने बनारस में कंपनी के समक्ष आत्मसमर्पण कर दिया। मीर कासिम दिल्ली भाग गया जहाँ अत्यंत निर्धनता में 1777 ई. में उसकी मृत्यु हो गई। इस प्रकार प्लासी में शुरू हुई प्रक्रिया को बक्सर की विजय ने पूर्ण कर दिया और बंगाल अंग्रेजों के अधीन आ गया।

– मई, 1765 में क्लाइव को युद्धोत्तर औपचारिकताओं को पूरा करने के लिए पुन: भारत के गवर्नर के रूप में भेजा गया। क्लाइव ने सर्वप्रथम नवाब शुजाउदौला के साथ एक संधि की। इस संधि के द्वारा नवाब ने इलाहाबाद और कड़ा कंपनी को सौंप दिया और लड़ाई के मुआवजे के रूप में पचास लाख रुपये देना भी स्वीकार किया।

– बाद में क्लाइव ने 12 अगस्त, 1765 को मुगल बादशाह शाह आलम-II के साथ इलाहाबाद की प्रथम संधि पर हस्ताक्षर किए। इस संधि के अनुसार मुगल बादशाह को कंपनी की सुरक्षा में ले लिया गया और अवध के नवाब द्वारा दिए गए दोनों इलाके उसे सौंप दिए गए।

– क्लाइव ने अवध के नवाब शुजाउदौला के साथ 16 अगस्त, 1765 ई. को इलाहाबाद की  दूसरी संधि की।

– “बक्सर के युद्ध ने प्लासी के अधूरे कार्यों को पूरा किया” वी.स्मिथ

– बक्सर युद्ध के समय बंगाल का नवाब मीर कासिम था।

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