इस पोस्ट के माध्यम से हम भारत का संवैधानिक विकास के बारे में जानेंगे यह टॉपिक सिविल सर्विस परीक्षा की तैयारी करने वाले महत्वपूर्ण विद्यार्थियों के लिए बहुत महत्वपूर्ण है इसलिए हमारी इस पोस्ट को पूरा पढ़ें जिसमें आपको संवैधानिक विकास , 1773 का रेगुलेटिंग एक्ट , 1919 का भारत शासन , साइमन कमीशन इन सभी के बारे में हमने बिल्कुल सरल एवं आसान भाषा में नोट्स तैयार किए हैं ताकि आप अपनी परीक्षा की तैयारी घर बैठे अच्छे से कर सकें
भारत का संवैधानिक विकास
● जिन कानूनों और नियमों को ब्रिटिश शासन के दौरान भारत में शासन व्यवस्था संचालित करने के लिए बनाया गया जो आगे चलकर भारतीय परिप्रेक्ष्य में संविधान निर्माण हेतु काम आए, इसी प्रक्रिया को ही संवैधानिक विकास कहा जाता है।
● वर्ष 1600 ई. के चार्टर एक्ट (राजलेख) के तहत 31 दिसम्बर, 1600 को लंदन में 24 सदस्यीय ईस्ट इंडिया कंपनी की स्थापना की गई।
● इन 24 सदस्यों को “बोर्ड ऑफ डायरेक्टर्स” (संचालक या निदेशक मंडल, BOD) नाम दिया गया।
● बोर्ड ऑफ डायरेक्टर्स को पूर्वी देशों में व्यापार करने का अधिकार प्रदान किया गया। ( प्रारम्भिक 15 वर्षों के लिए)
● 1608 ई. में ईस्ट इंडिया कम्पनी के प्रथम प्रतिनिधि के रूप में “कैप्टन विलियम हॉकिंस” भारत आया।
● कैप्टन विलियम हॉकिंस ने आगरा में मुगल बादशाह जहाँगीर से भारत में व्यापार करने की असफल मुलाकात की थी।
● ईस्ट इंडिया कंपनी ने 1613 ई. में सूरत में अपना प्रथम व्यापारिक केन्द्र/कोठी स्थापित किया।
● दिसम्बर 1615 ई. में “सर टॉमस रो” भारत आये तथा इन्होंने 10 जनवरी, 1616 को अजमेर में मैगजीन /अकबर के दुर्ग में मुगल बादशाह जहाँगीर से मुलाकात कर भारत में व्यापार करने की अनुमति प्राप्त की।
● ईस्ट इंडिया कंपनी ने 1617 में मद्रास के निकट मूसलीपट्टनम/मछलीपट्टनम में दक्षिणी भारत का प्रथम व्यापारिक केन्द्र/कोठी स्थापित किया।
● 1700 ई. में कलकत्ता नगर की स्थापना हुई।
● 1726 ई. के चार्टर एक्ट के तहत पहली बार वि-केन्द्रीकरण की व्यवस्था को अपनाते हुए बंगाल, बंबई व मद्रास प्रेसिडेन्सी में अलग-अलग गवर्नर नियुक्त किए गए।
● 1757 ई. के “प्लासी के युद्ध” को भारत में ब्रिटिश सत्ता का प्रथम प्रयास माना जाता है।
● 1764 के बक्सर के युद्ध के उपरान्त भारत में ब्रिटिश साम्राज्य की स्थापना हुई।
1773 का रेग्युलेटिंग एक्ट
● इस अधिनियम को ब्रिटिश प्रधानमंत्री लॉर्ड नॉर्थ द्वारा स्वीकृत किया गया।
● इस एक्ट का मुख्य उद्देश्य ईस्ट इंडिया कंपनी पर ब्रिटिश संसद का नियंत्रण स्थापित करना था।
● इस एक्ट के तहत पहली बार केन्द्रीकरण की व्यवस्था को अपनाते हुए बंबई व मद्रास प्रेसिडेंसी को बंगाल प्रेसिडेंसी के अधीन कर दिया गया।
● इन तीनों प्रेसिडेंसी में विधि बनाने का अधिकार बंगाल के गवर्नर जनरल व इसकी 4 सदस्यीय परिषद् को दिया गया।
● इस एक्ट के तहत बंगाल में गवर्नर जनरल का पद सृजित किया गया।
● वारेन हेस्टिंग्ज बंगाल के प्रथम गवर्नर जनरल बने।
● इस एक्ट के तहत 1774 ई. में कलकत्ता में अपेक्स न्यायालय स्थापित किया गया। जिसमें एक मुख्य न्यायाधीश व तीन अन्य न्यायाधीश रखे गये।
भारत में क्रांतिकारी आंदोलन – पहला चरण एवं दूसरा चरण
लोकसभा अध्यक्ष (स्पीकर) की शक्तियां और कार्य
1784 का पिट्स इण्डिया एक्ट
● इस एक्ट का नाम ब्रिटिश प्रधानमंत्री “विलियम पिट” के नाम पर पड़ा।
● इसके तहत ईस्ट इंडिया कंपनी के कार्यों को व्यापारिक व राजनीतिक दो भागों में विभाजित कर दिया गया।
● व्यापारिक कार्य “बोर्ड ऑफ डॉयरेक्टर्स” के पास यथावत रखे गये।
● राजनीतिक कार्य हेतु 6 सदस्यीय “नियंत्रक मंडल” (BOC) की स्थापना की गई।
● इस एक्ट के तहत “BOD” व “BOC” के माध्यम से कम्पनी के कार्यों के सम्बन्ध में “द्वैध शासन/दोहरा शासन” लागू किया गया, जो वर्ष 1858 तक चला।
● इस एक्ट के तहत भारत के साथ चाय तथा चीन के साथ व्यापार के एकाधिकार को छोड़कर ईस्ट इण्डिया कंपनी के व्यापार करने के एकाधिकार को समाप्त कर दिया गया।
● घोषणा की गई कि भारत में व्यापार अन्य यूरोपियन नागरिक भी कर सकते हैं ।
● ईसाई धर्म प्रचारक मिशनरियों को भारत में धर्म प्रचार करने तथा व्यापार करने का अधिकार प्रदान किया गया।
● इस एक्ट के तहत प्रावधान किया गया कि कंपनी सालाना 1 लाख रुपये भारत में शिक्षा पर खर्च करेगी तथा 20,000 अंग्रेजी सैनिक अपने खर्च पर भारत में रखेगी।
1833 का चार्टर एक्ट
● भारत के साथ चाय व चीन के साथ व्यापार को समाप्त कर दिया गया।
● इसी एक्ट के तहत ईस्ट इंडिया कंपनी के व्यापार करने के अधिकार को समाप्त कर दिया गया तथा घोषणा की गई कि कंपनी आगे से केवल राजनीतिक कार्य ही करेगी।
● इस एक्ट के तहत बंगाल के “गवर्नर जनरल” को भारत का “गवर्नर जनरल” घोषित कर दिया गया तथा ब्रिटिश भारत में विधि बनाने का अधिकार गवर्नर जनरल व उसके 4 सदस्य परिषद् को दिया गया। इन 4 सदस्यों में एक विधि सदस्य शामिल करने का प्रावधान किया गया।
● मैकाले की अध्यक्षता में ही सन् 1834 में चार सदस्य विधि आयोग गठित किया गया, जिसका मुख्य कार्य भारत के लिए जारी किए गए नियमों व कानूनों को तथा आने वाले अधिनियमों को लिपिबद्ध करना था।
● लॉर्ड विलियम बैंटिक भारत के प्रथम गवर्नर जनरल बने तथा यह बंगाल के अंतिम गवर्नर जनरल थे।
1853 का चार्टर एक्ट
● यह चार्टर एक्ट की श्रृंखला का अंतिम चार्टर एक्ट था।
● इस एक्ट के तहत ईस्ट इंडिया कंपनी के राजनीतिक कार्य को प्रशासनिक व विधायी दो भागों में विभाजित किया गया।
● प्रशासनिक कार्य गवर्नर जनरल व इसकी 4 सदस्यीय कार्यकारिणी को सौंपे गये।
नोट – विधायी कार्यों हेतु पहली बार 12 सदस्यीय विधानपरिषद् गठित की गई। जिसका नाम “भारतीय केन्द्रीय विधानपरिषद्” रखा गया।
● इस एक्ट में सिविल सेवा परीक्षा हेतु “खुली प्रतियोगी परीक्षा” के आयोजन का प्रावधान किया गया।
● इस एक्ट के तहत 1854 विशिष्ट नागरिक सेवाओं में भारतीयों को शामिल करने के संबंध में सुझाव देने के लिए ‘मैकाले’ समिति गठित की गई।
1858 का भारत शासन अधिनियम
नोट :-1858,1919 व 1935 के अधिनियम को भारत शासन /सरकार अधिनियम के नाम से जाना जाता है।
● यह एक्ट फरवरी, 1858 में ब्रिटिश प्रधानमंत्री पामस्टर्म के कार्यकाल में प्रस्तुत हुआ तथा पारित अगस्त, 1858 में प्रधानमंत्री लॉर्ड डर्बी के कार्यकाल में हुआ।
● इस एक्ट के तहत ईस्ट इण्डिया कम्पनी की समस्त शक्तियाँ ब्रिटिश सम्राट को हस्तांतरित कर दी गई। सम्राट की शक्तियों का उपयोग भारत के संदर्भ में करने हेतु “भारत सचिव” का पद सृजित किया गया। भारत सचिव की सहायता हेतु 15 सदस्यीय “भारत परिषद्” का गठन किया गया।
● भारत परिषद् में बोर्ड ऑफ डॉयरेक्टर्स व बोर्ड ऑफ कन्ट्रोलर के प्रतिनिधियों को शामिल करते हुए बोर्ड ऑफ डॉयरेक्टर्स व बोर्ड ऑफ कन्ट्रोलर को समाप्त कर दिया गया।
● भारत सचिव व भारत परिषद् का मुख्यालय लंदन में स्थित था।
● भारत सचिव ब्रिटिश संसद का सदस्य होता था। इस कारण यह भारतीय जनता के प्रति नहीं बल्कि ब्रिटिश संसद के प्रति उत्तरदायी होता था।
नोट – लॉर्ड स्टेनले प्रथम भारत सचिव नियुक्त हुए।
नोट – विलियम हेयर अन्तिम भारत सचिव नियुक्त हुए।
● गवर्नर जनरल को भारत में ब्रिटिश सम्राट का प्रत्यक्ष प्रतिनिधि घोषित किया गया तथा इसे सम्राट के प्रतिनिधि के रूप में “वायसराय” पदनाम दिया गया।
नोट – लॉर्ड कैनिंग भारत के प्रथम वायसराय बने। (ब्रिटिश भारत के अंतिम गवर्नर जनरल)
● 1858 के एक्ट के संबंध में महारानी विक्टोरिया द्वारा की गई उद्घोषणा को 1 नवम्बर, 1858 को इलाहाबाद में आयोजित दरबार में लॉर्ड कैंनिंग ने पढ़कर सुनाया।
● भारत के शिक्षित वर्ग ने इस “एक्ट को अपने अधिकारों का मैग्नाकार्टा” कहा।
1861 का भारत परिषद् अधिनियम
● इस एक्ट के तहत वायसराय लॉर्ड कैनिंग ने क्षैत्रिय प्रतिनिधित्व के सिद्धांत के तहत विधायी कार्यों हेतु पहली बार विधान परिषद् में भारतीयों को शामिल किया।
● इसी एक्ट से संवैधानिक विकास की वास्तविक शुरुआत मानी जाती है।
● इस एक्ट के तहत लॉर्ड कैनिंग ने विभागीय व्यवस्था तथा मंत्रिमण्डलीय व्यवस्था लागू की।
● इस एक्ट के तहत पहली बार 1862 ई. में कलकत्ता, बंबई व मद्रास में उच्च न्यायालय स्थापित किए गए।
● इस एक्ट के तहत वायसराय को नये प्रान्तों का गठन करने, विधेयकों पर वीटो करने तथा अध्यादेश जारी करने का अधिकार दिया गया।
● इस एक्ट के द्वारा 1773 के रेग्युलेटिंग एक्ट के तहत की गई केन्द्रीयकरण की व्यवस्था को पुन: विकेन्द्रीकरण में बदलते हुए बंबई व मद्रास प्रेसिडेंसी को बंगाल प्रेसिडेंसी के नियंत्रण से स्वतंत्र कर दिया गया।
1892 का भारत परिषद् अधिनियम
● विधानपरिषद् की सदस्य संख्या न्यूनतम 10 व अधिकतम 16 कर दी गई।
● पहली बार निर्वाचन व्यवस्था को अपनाया गया परन्तु यह पूर्णतया अप्रत्यक्ष थी।
● इस एक्ट के तहत प्रतिनिधि शासन तथा संसदीय शासन का अप्रत्यक्ष रूप से शुभारम्भ हुआ।
⇒ 1909 का भारत परिषद् अधिनियम:-

● भारत सचिव लॉर्ड मार्ले तथा भारत के वायसराय लॉर्ड मिन्टो ने 1906 में एक सुधार योजना बनाई इस सुधार योजना की जाँच करने हेतु 1906 में “सर ए अरूलैण्ड समिति” गठित की गई इसी समिति की सिफारिश पर इस सुधार योजना को 1909 के अधिनियम के रूप में भारत में लागू किया गया।
● इस एक्ट के तहत पहली बार प्रशासनिक कार्यों में भारतीयों को भागीदार बनाने हेतु वायसराय की कार्यकारिणी में प्रथम भारतीय सदस्य के रूप में “सत्येन्द्र प्रसाद सिन्हा” को शामिल किया गया, इन्हें विधि सदस्य बनाया गया।
● विधायी कार्यों में भारतीयों की भागीदारी को भी बढ़ाया गया और भारतीय केन्द्रीय विधान परिषद् का नाम बदलकर “औपनिवेशिक विधान परिषद्” कर दिया गया तथा इसकी सदस्य संख्या 60 कर दी गई।
● पहली बार प्रत्यक्ष निर्वाचन अपनाते हुए मताधिकार प्रदान किया गया।
● कुल जनसंख्या के 3% भाग को मताधिकार दिया गया। मताधिकार की न्यूनतम आयु 25 वर्ष निर्धारित की गई। महिलाओं को मताधिकार प्रदान नहीं किया गया। संपत्ति, कर, उपाधियाँ मताधिकार के आधार थे।
● प्रांतो व भारतीय सदस्यों को बजट पर पूरक प्रश्न पूछने का भी अधिकार दिया गया।
1919 का भारत शासन अधिनियम

● इस एक्ट को जारी करने के पीछे मुख्य दो कारण थे-
1. वर्ष 1916 का होमरूल आंदोलन।
2. वर्ष 1916 के मेसोपोटामिया कमीशन की रिपोर्ट जिसमें ब्रिटिश सरकार को भारत में विफल बताया गया।
● 20 अगस्त 1917 को ब्रिटिश सरकार ने पहली बार घोषणा करते हुए कहा कि हमारा उद्देश्य भारत में उत्तरदायी शासन की स्थापना करना है।
● इस एक्ट की प्रस्तावना “उत्तरदायी शासन की स्थापना करना” बनाई गई।
● 1918 में भारत सचिव मोन्टेग्यू तथा वायसराय चेम्सफोर्ड ने एक योजना निर्मित की जिसे- 1 अप्रैल, 1921 को 1919 के अधिनियम के नाम से लागू की गई।
● इस एक्ट में उत्तरदायी शासन की स्थापना करने के बजाय भारत के एक प्रभावशाली वर्ग (कांग्रेस) को 10 वर्षों के लिए ब्रिटिश सरकार के पक्ष में करने संबंधी प्रावधान किए गए।
● इस एक्ट में प्रशासनिक व विधायी दोनों कार्यों में भारतीयों की भागीदारी को बढ़ाया गया।
● प्रशासनिक कार्यों में भागीदारी को बढ़ाते हुए वायसराय की कार्यकारिणी में विधि, शिक्षा एवं उद्योग सदस्य के रूप में तीन भारतीयों को शामिल करने का प्रावधान किया गया।
● इस एक्ट के तहत पहली बार केन्द्र में द्वि-सदनीय विधानमण्डल स्थापित किया गया।

● इस एक्ट के तहत प्रांतो में विधानपरिषद् के रूप में एक सदनीय विधानमंडल का गठन किया गया।
● न्यूनतम सदस्य संख्या – 60
● अधिकतम सदस्य संख्या – 140
● इस एक्ट के तहत पहली बार दो सूचियों के माध्यम से केन्द्र व प्रान्तों के मध्य शक्तियों का विभाजन किया गया।
1. केन्द्रीय सूची 2. प्रांतीय सूची
● इस एक्ट के तहत प्रांतीय सूची के विषयों को आरक्षित व हस्तांतरित दो भागों में विभाजित करते हुए आठ प्रांतों में 1 अप्रैल, 1921 को द्वैध शासन लागू किया गया।
● बंगाल, बिहार, असम, संयुक्त प्रान्त, मध्य प्रान्त, बम्बई, मद्रास, पंजाब।
● इस एक्ट के तहत प्रान्तीय बजट को केन्द्रीय बजट से अलग कर दिया गया तथा प्रान्तों को बजट निर्माण का अधिकार दिया गया।
● इसी एक्ट के तहत “एकवर्थ” समिति की सिफारिश पर आम बजट व रेल बजट को अलग-अलग किया गया।
● इस एक्ट में लोक लेखा समिति का गठन किया गया तथा नियंत्रण एवं महालेखा परिषद् (CAG) का पद सृजित कर दिया गया तथा महिलाओं को भी मताधिकार प्रदान किया गया।
● पृथक् निर्वाचक मण्डल को मुस्लिमों सहित, सिख, भारतीय ईसाई, यूरोपियन तथा आंग्ल भारतीयों पर भी लागू कर दिया गया।
● इस एक्ट में लोक सेवा आयोग के गठन का प्रावधान किया गया। इसका नाम इम्पीरियल (संघ) लोक सेवा आयोग रखा गया।
● इसकी स्थापना 1 अक्टूबर, 1926 को सर रोज बार्कर की अध्यक्षता में की गई ।
● लन्दन स्थित भारत परिषद् की सदस्य संख्या न्यूनतम 8 व अधिकतम 12 कर दी गई।
● उदारवादियों ने इस एक्ट को भारत का “मैग्नाकार्टा” कहा। इस एक्ट की समीक्षा हेतु 10 वर्षीय आयोग के गठन का प्रावधान किया गया।
साइमन कमिशन (श्वेत कमिशन)
● गठन – 8 नवम्बर, 1927 को भारत सचिव बर्किन हैड द्वारा
● सदस्य – 7 (सभी अंग्रेज)
● अध्यक्ष- जॉन साइमन
● गठन का कारण- 1919 के एक्ट की समीक्षा करना
● भारत पहुँचा- 3 फरवरी, 1928 को बम्बई
● विरोध- कांग्रेस + सभी दलों द्वारा
● सहयोग- B.R. अम्बेडकर + मुस्लिम लीग पार्टी का सहनवाज हुसैन गुट ने।
● रिपोर्ट- 1930 में
● रिपोर्ट पर विचार- 3 गोलमेज सम्मेलन का आयोजन
1. 1930
2. 1931
3. 1932
● कांग्रेस ने महात्मा गांधी के नेतृत्व में केवल 1931 के द्वितीय गोलमेज सम्मेलन में भाग लिया।
● 05 मार्च, 1931 को तेज बहादुर सप्रु के प्रयासों से दिल्ली में हुए गांधी-इरविन समझौते के आधार पर कांग्रेस ने इस गोलमेज सम्मेलन में भाग लिया था।
● 16 अगस्त, 1932 को ब्रिटिश प्रधानमंत्री रैम्जे मैक्डोनाल्ड ने साम्प्रदायिक पंचाट अवार्ड की घोषणा की जिसमें दलितों सहित 11 समुदायों को पृथक निर्वाचक मण्डल प्रदान किया गया।
● दलितों के लिए की गई पृथक निर्वाचक मण्डल की व्यवस्था के कारण गांधीजी ने 20 सितम्बर, 1932 को यरवदा जेल (पूणे महाराष्ट्र) में अनशन कर दिया।
● 26 सितम्बर, 1932 को राजेन्द्र प्रसाद व मदन मोहन मालवीय के प्रयासों से गांधीजी व अम्बेडकर के मध्य पूना समझौता हुआ, जिसमें संयुक्त हिंदू निर्वाचन व्यवस्था के अंतर्गत दलितों के लिए स्थान आरक्षित रखने पर सहमति बनी।
● इस समझौते को पूना पैक्ट भी कहा जाता है।
● तृतीय गोलमेज सम्मेलन के बाद 1933 में ब्रिटिश सरकार द्वारा नये अधिनियम के निर्माण करने हेतु श्वेत पत्र जारी किया गया।
1935 का भारत सरकार/शासन अधिनियम
● निर्माण की घोषणा- 1933 में
● निर्माण- 1935 में
● लागू- 1 अप्रैल, 1937 को
● इस एक्ट में भी उत्तरदायी शासन की स्थापना करना प्रस्तावना बनाई गई।
● यह एक्ट एक विस्तृत प्रलेख था जिसमें कुल 448 अनुच्छेद व 16 अनुसुचियाँ थी।
● प्रारम्भिक 321 अनुच्छेद तथा 10 अनुसूचियाँ भारत पर तथा शेष बर्मा (म्यांमार) पर लागू होती थी।
● इसी एक्ट के तहत बर्मा को भारत से अलग किया गया।
● इस एक्ट के तहत संघात्मक शासन स्थापित करने हेतु “अखिल भारतीय संघ” की स्थापना का प्रावधान किया गया जिसमें 11 ब्रिटिश प्रांतो, 6 चीफ कमिश्नरी क्षेत्रों तथा देशी रियासतों के संघ में शामिल नहीं होने के कारण “अखिल भारतीय संघ” स्थापित नहीं हो सका।
● पंडित जवाहर लाल नेहरू ने इस एक्ट को “दासता का घोषणा पत्र” या “दासता का चार्टर” कहा तथा “इसे अनेक ब्रेकों वाली इंजनरहित गाड़ी की संज्ञा दी”।
● इस एक्ट के तहत पहली बार तीन सूचियों के माध्यम से शक्तियों का विभाजन किया-
क्र.सं. | सूची का नाम | कानून निर्माण | विषय |
1. | संघीय सूची | संघ सरकार | 59 |
2. | प्रान्तीय सूची | प्रान्तीय सरकार | 54 |
3. | समवर्ती सूची | संघ सरकार | 36 |
ट – अवशिष्ट विषय को वायसराय के पास रखा गया।
● 1935 के एक्ट में भी केन्द्र में द्वि-सदनीय विधानमण्डल स्थापित किया गया।
● इस एक्ट के तहत पहली बार प्रांतोँ में द्वि-सदनीय विधान मण्डल स्थापित किया गया।

● विधानपरिषद् 6 प्रांतों में थी। असम, बंगाल, बिहार, संयुक्त प्रांत, बंबई व मद्रास प्रान्तों में द्वि –सदनीय विधानमंडल थे ।
● इस एक्ट के तहत दोहरा शासन (द्वैधशासन) को प्रांतो से हटाकर केन्द्र में लागू कर दिया गया, केन्द्र के विषयों को आरक्षित व हस्तांतरित दो भागों में विभाजित कर दिया गया।
● इस एक्ट के तहत प्रांतो को स्वायत्तता प्रदान करते हुए प्रांतोँ में उत्तरदायी शासन की स्थापना की गई। परन्तु उत्तरदायी शासन की व्यवस्था को 1939 में समाप्त कर दिया गया।
● इस एक्ट के तहत प्रांतो व देशी रियासतों में भी लोकसेवा आयोग के गठन का प्रावधान किया गया।
● इस एक्ट के तहत लंदन स्थित भारत परिषद् को समाप्त कर दिया गया तथा भारत सचिव की सहायता हेतु लंदन में हाई कमिश्नर (उच्चायुक्त) की नियुक्ति की गई।
● इस एक्ट के तहत कलकत्ता स्थित अपेक्स न्यायालय को 1 अक्टूबर, 1937 को दिल्ली स्थानान्तरित कर दिया गया तथा इसका नाम संघीय न्यायालय (फेडरल कोर्ट) कर दिया गया। इसमें एक मुख्य न्यायाधीश व छह अन्य न्यायाधीश रखे गये। “सर मौरिस ग्वायर” इसके प्रथम मुख्य न्यायाधीश बने