आज की इस पोस्ट में हम वायुमंडल : संघटन, संरचना और परतें — क्षोभमंडल से बाह्यमंडल तक विस्तार से पढ़ेंगे अगर आपके सिलेबस में भूगोल विषय है तो आपको टॉपिक को जरूर पढ़ना चाहिए नीचे हमने बहुत ही शानदार नोट्स आपके लिए तैयार किए हैं ताकि आप पर बैठे बहुत ही शानदार तैयारी बिल्कुल फ्री में कर सकते हैं भूगोल विषय के अन्य टॉपिक भी हम इसी प्रकार तैयार कर रहे हैं ताकि आप घर बैठे बिना किसी कोचिंग के भी किसी भी परीक्षा की अच्छे से तैयारी कर सकें
वायुमंडल : संघटन व संरचना
- वायुमंडल पृथ्वी के चारों ओर हवा के विस्तृत भंडार को कहते हैं। यह सौर विकिरण की लघु तरंगों को पृथ्वी के धरातल तक आने देता है परन्तु पार्थिव विकिरण की लंबी तरंगों के लिए अवरोधक बनता है। इस प्रकार यह ऊष्मा को रोककर विशाल काँचघर की भाँति कार्य करता है जिससे पृथ्वी पर औसतन 15°C तापमान बना रहता है। यही तापमान पृथ्वी पर जीवमंडल के विकास का आधार है।

(1) स्थिर गैसें – नाइट्रोजन, ऑक्सीजन, ऑर्गन, हीलियम प्रमुख स्थर गैसें हैं।
(2) अस्थिर गैसें – CO2, ओजोन, मीथेन, जलवाष्प।
(3) नोबेल / निष्क्रिय / अक्रीय गैसें – अणुभार तत्त्व सारणी में इनका मान शून्य होता है ये जैविक इकाई में पूर्णत: निष्क्रिय रूप से रहती है जैसे – ऑर्गन, नियोन, हीलियम, क्रिप्टॉन।
(4) हरित गृह गैसें – CO2, मीथेन, नाइट्रस ऑक्साइड, क्लोरो – फ्लोरो कार्बन, जलवाष्प, ओजोन।
⇒ गैसों का वितरण-

वायुमंडल का संघटन
- वायुमंडल अनेक गैसों का मिश्रण है, जिसमें ठोस और तरल पदार्थों के कण असमान मात्राओं में तैरते रहते हैं। इसमें नाइट्रोजन सर्वाधिक मात्रा में है। उसके बाद क्रमशः ऑक्सीजन, ऑर्गन, कार्बन-डाई-ऑक्साइड, नियॉन, हीलियम, ओजोन व हाइड्रोजन आदि गैसों का स्थान आता है। इसके अलावा जलवाष्प, धूल के कण तथा अन्य अशुद्धियाँ भी असमान मात्रा में वायुमंडल मे मौजूद रहती हैं। संसार की मौसमी दशाओं के लिए जलवाष्प, धूल के कण तथा ओजोन अत्यधिक महत्त्वपूर्ण हैं।
ओजोन
- यद्यपि वायुमंडल में इसकी मात्रा बहुत कम होती है परंतु यह वायुमंडल का एक महत्त्वपूर्ण घटक है। यह एक छननी की भाँति कार्य करता है और सूर्य की पराबैंगनी किरणों के विकिरण को अवशोषित कर लेता है। यदि यह किरणें सतह तक पहुँच जाती तो तापमान में तीव्रवृद्धि व चर्म कैंसर का खतरा उत्पन्न हो जाता। यह गैस समताप मंडल के निचले भाग में पाई जाती है। इसकी उपस्थिति 15 से 50 कि.मीटर की ऊँचाई तक होती है परन्तु 15 से 35 कि.मीटर की ऊँचाई पर यह सघनता से पायी जाती है।
जलवाष्प
- वायुमंडल में इसकी मात्रा 0 से 4% तक होती है। उष्णार्द्र क्षेत्रों में यह 4% तक एवं मरुस्थलीय व ध्रुवीय प्रदेशों में अधिकतम 1% तक पाई जाती है। ऊँचाई के साथ जलवाष्प की मात्रा में कमी आती है। जलवाष्प की कुल मात्रा का आधा भाग 2000 मीटर की ऊँचाई तक मिलता है।
धूलकण
- इनमें मुख्यतः समुद्री नमक, सूक्ष्म मिट्टी, धुएँ की कालिख, राख, पराग, धूल तथा उल्कापात के कण शामिल होते हैं। ये मुख्यतः वायुमंडल के निचले स्तर अर्थात् क्षोभमंडल में पाए जाते हैं। ध्रुवीय और विषुवतीय प्रदेशों की अपेक्षा उपोष्ण तथा शीतोष्ण क्षेत्रों में धूल के कणों की मात्रा अधिक मिलती हैं। ये धूलकण आर्द्रताग्राही केन्द्र होते हैं जहाँ वायुमंडलीय जलवाष्प संघनित होकर वर्षण के विभिन्न रूपों की उत्पत्ति का कारण बनते हैं। धूल के कण सूर्यातप को रोकने और उसे परावर्तित करने का कार्य भी करते हैं। ये सूर्योदय और सूर्यास्त के समय प्रकाश के प्रकीर्णन द्वारा आकाश में लाल व नारंगी रंग की धाराओं का भी निर्माण करते हैं। धूलयुक्त कुहरा भी धूलकणों की उपस्थिति में बनी घनी धुँध ही है।
वायुमंडल की संरचना
यद्यपि वायुमंडल का विस्तार लगभग 10000 कि.मीटर की ऊँचाई तक मिलता है परंतु वायुमंडल का 99% भार सिर्फ 32 कि.मीटर तक सीमित है। वायुमंडल को 5 विभिन्न स्तरों में बाँटकर देखा जा सकता है।

क्षोभमंडल
- ध्रुवों पर यह 8 कि.मीटर तथा विषुवत् रेखा पर 18 कि.मीटर की ऊँचाई तक पाया है। इस मंडल में प्रति 165 मीटर की ऊँचाई पर 10C तापमान घटता है तथा प्रत्येक एक कि.मीटर की ऊँचाई पर तापमान में 6.50C की कमी आती है। इसे ही सामान्य ताप पतन ह्रास दर कहा जाता है। वायुमंडल में होने वाली समस्त मौसमी गतिविधियाँ क्षोभ मंडल में ही पाई जाती हैं। जैसे- तूफान, चक्रवात, बादलों का निर्माण।
समताप मंडल (Stratosphere)
- इस मंडल में प्रारम्भ में तापमान स्थिर होता है परन्तु 20 कि.मीटर की ऊँचाई के बाद तापमान में अचानक परिवर्तन आ जाता है। ऐसा ओजोन गैसों की उपस्थिति के कारण होता है जो कि पराबैंगनी किरणों को अवशोषित कर ताप बढ़ा देता है। यह मंडल मौसमी हलचलों से मुक्त होता है इसलिए वायुयान चालक यहाँ विमान उड़ाना पसंद करते हैं।
मध्यमंडल (Mesosphere)
- इस मंडल की ऊँचाई 50 से 80 कि.मीटर तक होती है। इसमें तापमान में एकाएक गिरावट आ जाती है एवं तापमान गिरकर-1000C तक पहुँच जाता है।
आयन मंडल (Lonosphere)
- ऊँचाई (80-400 कि.मीटर) इसमें विद्युत आवेशित कणों की अधिकता होती है एवं ऊँचाई के साथ तापमान बढ़ने लगता है। वायुमंडल की इसी परत से रेडियो की तरंगें परावर्तित होती हैं।
बाह्य मंडल (Exosphere)
- ऊँचाई (400-1000 कि.मीटर) इसमें भी विद्युत आवेशित कणों की प्रधानता होती है एवं यहाँ क्रमशः N2, O2, He, H2 की अलग-अलग परतें होती हैं। इस मंडल में 1000 कि.मीटर के बाद वायुमंडल बहुत ही विरल हो जाता है और अंततः 10000 कि.मीटर की ऊँचाई के बाद यह क्रमशः अंतरिक्ष में विलीन हो जाता है।
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