संसदीय समिति क्या है और इसके कार्य 

इस पोस्ट में हम संसदीय समिति के बारे में पढ़ेंगे यह टॉपिक आपको भारतीय राजव्यवस्था विषय में पढ़ने के लिए मिलेगा जो कि सिविल सर्विस परीक्षा के लिए महत्वपूर्ण है इसके क्या कार्य है इसके बारे में समस्त जानकारी आपको नीचे पढ़ने को मिलेगी जिसे हमने बिल्कुल सरल एवं आसान भाषा में आपको बताने का प्रयास किया है

संसदीय समिति क्या है

●   राष्ट्रपति समय-समय पर सदनों का या किसी सदन का संसद की स्थायी समितियों में लोकसभा से आने वाले सदस्यों को लोकसभा सदस्य “अनुपातिक प्रतिनिधित्व की एकल संक्रमण मत पद्धति” द्वारा अपने में से चुनते है।

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●   किसी भी मंत्री को स्थाई समिति का सदस्य नहीं बनाया जाता।

●   इन समितियों में राज्य सभा से आने वाले सदस्यों को सभापति द्वारा नामित किया जाता है।

●   इनका कार्यकाल 1 वर्ष का होता है।

लोकलेखा समिति

●   इस समिति की स्थापना 1921 में भारत सरकार अधिनियम,1919 के तहत की गई और यह संसदीय समितियों में सबसे प्राचीन समिति है।

●   इस समिति का कार्यकाल एक वर्ष होता है। तथा इसके सदस्यों को आनुपातिक प्रतिनिधित्व के एकल-संक्रमणीय मत द्वारा चुना जाता है।

●   कुल सदस्य संख्या – 22, (15 लोकसभा तथा 7 राज्यसभा सदस्य)

●   वर्तमान अध्यक्ष :- अधीर रंजन चौधरी

●   इसका अध्यक्ष लोकसभा के अध्यक्ष द्वारा नियुक्त किया जाता है। सामान्यत: विपक्षी पार्टी के किसी सदस्य को इसका अध्यक्ष चुना जाता है।

●   मंत्रियों को इसमें शामिल नहीं किया जाता है।

     लोकलेखा समिति को प्राक्कलन समिति की ‘जुडवाँ’ बहन के नाम से भी जाना जाता है।

संसदीय समिति के कार्य

(1)   नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक की वार्षिक रिपोर्ट की जाँच करना अर्थात् सार्वजनिक व्यय की जांच करना।

(2)   भारत सरकार के वार्षिक वित्तीय खातों तथा सदन के समक्ष प्रस्तुत अन्य खातों की जाँच करना।

(3)   विनियोग लेखों की जाँच करना।

प्राक्कलन समिति

●   1950 में जॉन मथाई की सिफारिश पर इस समिति का गठन किया गया।

●   वर्तमान स्थायी समितियों में सबसे बड़ी समिति है।

●   इसका गठन एक वर्ष के लिए आनुपातिक प्रतिनिधित्व के एकल-संक्रमणीय मत द्धारा किया जाता है।

   कुल सदस्य संख्या – 30

●   इस समिति से सभी सदस्य लोकसभा से नियुक्त किए जाते है।

●   मंत्रियों को इसमें शामिल नहीं किया जाता है।

●   इन सदस्यों की नियुक्ति लोकसभा के अध्यक्ष द्वारा की जाती है।

●   वर्तमान अध्यक्ष:- गिरीश बाल चन्द्रन बापत

सार्वजनिक उपक्रम समिति

●   1 मई, 1964 में कृष्णा मेनन समिति के सुझाव पर इस समिति का गठन किया गया।

●   इस समिति का कार्यकाल एक वर्ष का होता है।

●   इसके सदस्यों का चुनाव आनुपातिक प्रतिनिधित्व के एकल-संक्रमणीय मत द्वारा होता है।

●   मंत्रियों को इसमें शामिल नहीं किया जाता है।

●   कुल सदस्य संख्या 22, (15 लोकसभा तथा 7 राज्यसभा सदस्य)

●   इनके सदस्यों की नियुक्ति लोकसभा अध्यक्ष द्वारा की जाती है।

●   वर्तमान अध्यक्ष:- मीनाक्षी लेखी

विभागों की स्थायी समितियाँ

●   सर्वप्रथम 1989 में कृषि समिति, वन एवं पर्यावरण समिति तथा विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी समिति की तीन स्थायी समिती गठित की गई।

●   1993 में नई विभागीय समिति प्रणाली लागू की गई।

●   2004 में विभागीय समितियों की संख्या 24 (16 लोकसभा, 8 राज्यसभा) कर दी गई।

●   इन 24 समितियों में से 16 लोकसभा के अधीन तथा 8 राज्यसभा के अधीन कार्य करती है।

●   प्रत्येक विभागीय समिति में 31 (21 लोकसभा, 10 राज्यसभा) सदस्य होते है।    

धन विधेयक और सामान्य विधेयक में अन्तर

क्र.सं.धन विधेयकसामान्य विधेयक
1.धन विधेयक केवल लोकसभा में पेश किया जाता है, राज्यसभा में नहीं।सामान्य विधेयक को संसद के किसी भी सदन में पेश किया जाता है।
2.धन विधेयक को प्रस्तुत करने से पूर्व राष्ट्रपति की अनुमति आवश्यक होती है।सामान्य विधेयक को पेश करने के लिए राष्ट्रपति की पूर्वानुमति आवश्यक नहीं है।
3.धन विधेयक के संबंध में लोकसभा को अत्यान्तिक अधिकार प्रदान किया जाता है।सामान्य विधेयक के संबंध में दोनों सदनों को समान अधिकार प्राप्त है।
4.धन विधेयक के संबंध में संयुक्त बैठक का प्रावधान नहीं है।सामान्य विधेयक पर दोनों सदनों में मतभेद होने पर राष्ट्रपति संयुक्त बैठक  बुला सकता है।
5.धन विधेयक को राष्ट्रपति पुनर्विचार के लिए वापस नहीं कर सकता हैं। (अनुच्छेद 111)सामान्य विधेयक को राष्ट्रपति एक बार पुनर्विचार के लिए वापस कर सकता हैं। (अनुच्छेद 111)
6.धन विधेयक को दूसरे सदन में भेजने के पूर्व लोकसभा के अध्यक्ष को इस बात का प्रमाण पत्र देना पड़ता है कि यह धन विधेयक है।इसे राज्यसभा संशोधित या अस्वीकृत कर सकती है।
7.धन विधेयक को राज्यसभा केवल 14 दिन तक अपने पास रोक सकती हैं।राज्यसभा साधारण विधेयक को 6 महीने तक रोक सकती है।

धन विधेयक और वित्त विधेयक

क्र.सं.धन विधेयकवित्त विधेयक
1.धन विधेयक को पारित करने की प्रक्रिया अनु.109 में दी गयी है।वित्त विधेयक को पारित करने की प्रक्रिया अनु.117 में दी गयी हैं।
2.धन विधेयक का विषय क्षेत्र वित्त विधेयक की अपेक्षा सीमित होता है अत: प्रत्येक धन विधेयक वित्त विधेयक होता है।वित्त विधेयक धन विधेयक में व्यापक होता है, अत: प्रत्येक वित्त विधेयक धन विधेयक नहीं होता है।
3.धन विधेयक को राज्यसभा में पेश नहीं किया जा सकता हैं।अनु. 117 (3) के अधीन आने वाले वित्त विधेयक को छोड़कर अन्य वित्त विधेयकों को भी राज्यसभा में पेश नहीं किया जा सकता है।
4.धन विधेयक राज्यसभा द्वारा पारित नहीं किया जाता है वरन सिफारिश सहित या रहित लौटा दिया जाता है।वित्त विधेयक को दोनों सदनों द्वारा पारित किया जाता है।
5.धन विधेयक के संबंध में संयुक्त बैठक का प्रावधान नहीं है।वित्त विधेयक के संबंध में संयुक्त बैठक बुलायी जा सकती है।
6.धन विधेयक को राष्ट्रपति पुनर्विचार के लिए नहीं लौटा सकता है। वह उस पर अनुमति देने के लिए बाध्य है।वित्त विधेयक को राष्ट्रपति पुनर्विचार के लिए लौटा सकता है।

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